Tarkeshwar mandir

ताडकेशवर महादेव मंदिर

प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण  उत्तराखंड अपनी कला संस्कृति एवं रीतिरिवाजों के अलावा अपने पवित्र मंदिर एवं धार्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है।  देवभूमि उत्तराखंड में विभिन्न धार्मिक स्थल है जो अपने ऐतिहासिक महत्व को जीवंत रखते आ रहे है।  जिनके बारें में अक्सर हमें पौराणिक कहानियों एवं इतिहास के पन्नों में भी पढ़ने को मिल जाता है।  उन्ही ऐतिहासिक स्थलों में से एक है  ताडकेशवर महादेव मंदिर  जो भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र स्थल है।

ताडकेशवर महादेव मंदिर  का भव्य मेला एवं इतिहासिक महत्व के बारें में आज भी लोग रहस्मय बातें साँझा किया करते है।  आज के इस लेख के माध्यम से हम आप के साथ ताडकेशवर महादेव मंदिर का इतिहास एवं   मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों के बारें में जानकरी साँझा करने वाले है।  ताडकेशवर महादेव मंदिर  के बारें में जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

ताडकेशवर महादेव मंदिर के बारें में

खूबसूरत पहाड़ों के मध्य चीड़ एवं देवदार वृक्षों से घिरा हुवा ताडकेशवर महादेव मंदिर उत्तररखण्ड के प्राचीन मंदिरों में एक है जो की भगवान् शिव जी को समर्पित है।  आस्था एवं भक्ति भवना से ओतप्रेत यह मंदिर उत्तराखंड के  पौड़ी गढ़वाल जिलें के  लैंसडाउन ब्लॉक में स्थित है। ताडकेशवर महादेव मंदिर  समुद्र तल से लगभग 2092 मीटर है स्थित है।  यह लगभग 80  गांव के समूह का मंदिर है जिसमें हर नये फसल की उपज को भेंट के रूप में चढ़ाया जाता है।

सड़क से लगभग 500  मी० की दुरी तय करने पर भगवान  शंकर का भव्य मंदिर दिखाई देता है।  मंदिर के साथ में धर्मशाला बनाया गया है जो की यहाँ आयें श्रृद्धालुओं को विश्राम की व्यवस्था प्रदान करता है।  मंदिर के साथ में ही एक कुंड है जिसके बारें में किवदंती है की माता पार्वती ने इसे खुद खोदा था।  इस जलाभिषेक के बारें में एक रोचक तथ्य यह भी है की इस कुंड के पानी से श्रद्धालु रोग मुक्त होते है। जो भी भक्त सच्चें मन से प्रार्थना करते है मान्यता है की उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।

मंदिर का नाम तारकेश्वर  महादेव मंदिर कैसे पड़ा।

ताडकेशवर महादेव मंदिर भगवान शिव जी के सिद्ध पीठों में से एक है।  स्कंद पुराण के केदारखंड में  मधु एवं विष गंगा नदियों का उद्गम स्थल भी  ताड़केश्वर धाम में माना गया है। मंदिर का नाम ताड़केश्वर  पड़ने के पीछें मान्यता है की भगवान शिव जी ने असुरराज ताड़कासुर  को अंत समय में  क्षमा देते हुए वरदान की कलयुग में आप इसी स्थान पर मेरी पूजा आपके नाम से होगी।  तब से यह जगह  ताडकेशवर महादेव मंदिर के नाम से जानी जाती है।

तारकेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक कहानी

हम सभी लोग इस बात से भली भांति परिचित है की देव  भूमि उत्तराखंड को भगवान शिव जी की तपस्य स्थली के रूप में भी जानी जाती है।  पौराणिक कहानियों के आधार पर मान्यता है की ताड़कासुर एक राक्षस था।  जो की भोलेनाथ का भक्त था जिसके कारण उसे भगवान शिव जी ने अमरता का वरदान दिया था।  समय बीत जाने के पश्चात ताड़कासुर पृथ्वी पर गलत काम करना शुरू कर देता है।  इस देव तुल्य भूमि में गलत कार्य करने  वाले को भगवान सजा जरूर देते है।  ताड़कासुर संतों का परेशान करके उन्हें मारने लगता है।  जिससे तंग आकर सभी संत भगवान शिव जी से मदद का अनुरोध करते है।

लेकिन ताड़कासुर भगवान शिव के होते है इसलिए वह उनका नास नहीं कर सकते।  ताड़कासुर को दंड देने के लिए भगवान शिव ने माँ पार्वती से विवाह करके कार्तिक को जन्म दिया।  कार्तिक जी ताड़कासुर को मारने ही वाले होते है की ताड़कासुर भगवान शिव जी से क्षमा मांगते है।  तब भगवान शिव उन्हें माफ़ करते हुए कलयुग में अपनी पूजा उनके नाम से होने का वरदान देते है।  इसलिए तब से भगवान शिव जी की पूजा ताड़कासुर के नाम से होती है।  मंदिर में भगवान शिव जी की प्रतिमा के साथ शिवलिंग मौजूद है।

तारकेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ें रोचक तथ्य
  1. भगवान शिव जी को समर्पित यह मंदिर समुंद्रतल से 2092 मी० की उचाई पर स्थित है।
  2. तारकेश्वर मंदिर उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक है।
  3. ताडकेशवर महादेव मंदिर भगवान शिव जी के सिद्ध पीठों में से एक है।
  4. जलाभिषेक कुंड को माता पार्वती ने खुद खोदा था।
  5. मान्यता है की जो भी भक्त यहाँ सच्चें मन से कामना करते है उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है। जिसका प्रमाण मंदिर स्थित घंटिया बयां करती है।
तारकेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुचें

यदि तारकेश्वर मंदिर पहुंचने की बात की जाएं तो बताना चाहेंगे की यह मंदिर सड़क मार्ग से महज 500  मी० की दुरी पर स्थित है।  सड़क मार्ग के माध्यम से मंदिर तक आराम से पंहुचा जा सकता है।  सड़क मार्ग  से यह देश के कोने कोने से जुड़ा हुवा है।  देश की राजधानी दिल्ली से यह 350  किमी० की दुरी पर स्थित है ।  साथ ही यदि रेल मार्ग के माध्यम से तारकेश्वर मंदिर के दर्शन करना चाहें तो मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वारा है।  जहाँ से बस एवं टेक्सी सेवा के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *