उत्तराखंड अपनी परम्परागत रीती रिवाजों से जुड़ा हुवा है। लोक कथाओं पर आधारित यहाँ के लोग विभिन्न प्रकार के लोकपर्व,त्यौहार एवं मेलों को मानते है। अपनी संस्कृति को जीवंत रखते हुए उत्तराखंड वासी तरह तरह के मेलों का आयोजन करते है। उन्ही मेलों में से प्रमुख 10 मेलों के बारें में आज हम आपको बताने वाले है। इसलिए हमारें इस लेख “उत्तराखंड के 10 प्रमुख मेले ” के साथ अंत तक जुड़े रहे। लेकिन उससे पहले हम आपको यह भी बताना चाहेंगे की आखिर मेलों का आयोजन क्यों किया जाता है।
उत्तराखंड में मेलो का आयोजन क्यों किया जाता है
इस सन्दर्भ में बहुत से मत निकल कर सामने आते है की आखिर उत्तराखंड में मेलों का आयोजन क्यों किया जाता है। और प्रत्येक मेले का पौराणिक महत्व के साथ साथ धार्मिक महत्व भी माना जाता है। उत्तराखंड में हर मेले के पीछें कोई कहानी या कथा जुडी होती है जो की किसी खास व्यक्ति ,स्थल एवं कार्य से सम्बंधित होती है। उन्ही रस्मों के महत्व को संजोने के लिए उत्तराखंड में मेलों का आयोजन किया जाता है। उत्तराखंड में हर मेलों को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मानाने का प्रचलन है। हर मेले का मुख्या उद्देश्य लोगों के बीच आपसी सम्बन्ध को मजबूत एवं जीवित रखना है। आइये जानते है उत्तराखंड के 10 प्रमुख मेले कौन कौन से है।
उत्तराखंड के 10 प्रमुख मेले
- गौचर मेला
- सिद्धबली जयंती मेला
- जागड़ा मेला
- प्रसिद्ध स्याल्दे मेला
- चन्द्रबदनी मेला
- कुंभ मेला
- बैसाखी मेला
- सोमनाथ मेला
- बग्वाल मेला
- थल मेला
गौचर मेला
उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में गोचर मेला का नाम सर्वश्रेष्ठ स्थान पर आता है। उत्तराखंड के चमोली जिले में लगने वाला यह मेला 14 नवम्बर से एक सप्ताह की अवधि तक आयोजित होता है। मेले की स्थापना के विषय में मत है की 1943 में गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर बनोर्डि द्वारा मेलें की स्थापना की गई। मेलें का मुख्य उद्देस्य आपसी प्रेम को बढ़ाने के साथ स्थानीय क्रय विक्रय को एक मंच प्रधान करना था। हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करता यह मेला बड़े ही हर्ष और प्रेम भाव के साथ मनाया जाता है।
सिद्धबली जयंती मेला
सिद्धबली जयंती मेला उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में से एक है जो की उत्तराखंड के कोटद्वार शहर में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । तीन-दिवसीय मनाएं जाने वाला यह मेला कोटद्वार में स्थित खोह नदी के किनारे पर आयोजित किया जाता है। जो की बाबा सिद्धबली के जन्मदिवस की ख़ुशी के रूप मनाया जाता है। पौड़ी के कोटद्वार क्षेत्र में लगने वाला यह भव्य मेला हजारों श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करता है।
जागड़ा मेला
बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला जागड़ा मेला जौनसार के प्रमुख लोकदेवता महासू को समर्पित है। यह मेला हनोल में प्रति वर्ष बड़ी ही आस्था और भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है। जागड़ा मेला का अर्थ होता है रात्रि जागरण। उत्तराखंड में देवी देवताओं के आह्वान को जागर कहा जाता है। देहरादून के जौनसार बावर क्षेत्र के टौंस नदी के तट पर लोकदेवता महासू का मंदिर में मुख्य मेला का आयोजन किया जाता है।
प्रसिद्ध स्याल्दे मेला
मान्यता के अनुसार आज के दिन अपने देवी देवताओं को भोग लगा कर स्थानिया लोगो द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी परम्परागत यादों को संजोता यह पर्व बिखौती त्यौहार, स्याल्दे बिखौती मेला, स्याल्दे मेला, आदि नामों से जाना जाता है। स्याल्दे हर वर्ष विषुवत संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इसी लिए इसे विषुवत संक्रांति या विशुवती त्यौहार के नाम से जाना जाता है।
चन्द्रबदनी मेला
धार्मिक एवं आस्था क प्रतीक चन्द्रबदनी मेला उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में हर साल अप्रैल माह में आयोजित होता है। गढ़वाल के प्रसिद्ध चार शक्तिपीठों में से एक चन्द्रबदनी मन्दिर में लगने वाला यह भव्य मेला लोगों में एकता का भाव करता है। जिसमें हजारों की संख्या में विभिन्न गांव के लोगों द्वारा हिस्सा लिया जाता है।
कुंभ मेला
प्रसिद्ध कुंभ मेलें का नाम हर भारतीय की जुवान से सुना जा सकता है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में से एक कुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्ष के अंतराल में हरिद्वार शहर में बड़े ही सभ्य ढंग से आयोजित किया जाता है। लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला यह भव्य मेला सूर्य के मेष राषि में तथा बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश के शुभावसर पर मनाया जाता है।
बैसाखी मेला
बैसाखी हिन्दू धर्म में मनाएं जाने वाले प्रमुख मेलों एवं त्यौहारों में से एक है। हर साल अप्रेल माह के 13 एवं 14 तारिक को मनाये जाने वाला बैसाखी मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है। हरिद्वार और ऋषिकेश में आज के दिन बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व माना जाता है। इस लिए सभी लोगों के द्वारा गंगा स्नान करना जरुरी माना जाता है।
सोमनाथ मेला
उत्तराखंड मेलों की भूमि है। तरह तरह के मेलों में शामिल सोमनाथ का मेला अल्मोड़ा के रानीखेत के आसपास के क्षेत्र में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ आयोजित किया जाता है। सोमनाथ मेला हर वर्ष बैशाख महीने के अंतिम रविवार को आयोजित किया जाता है। मेला आयोजन का मुख्य उदेश्य आपसी सम्बन्ध को मजबूत बनाने के साथ साथ स्थानिया क्रय विक्रय को एक मंच प्रदान करना है।
बग्वाल मेला
उत्तराखंड राज्य के चम्पावत जिले में देवीधुरा नामक स्थल पर लगने वाला ऐतिहासिक मेला बग्वाल बड़ी ही आस्था और भक्ति भावना के साथ आयोजित किया जाता है। श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला यह भव्य मेला पत्थरों की बरसात के लिए प्रसिद्ध है। आज के दिन स्थानिया लोगों के खेमों द्वारा एक दूसरे पर पत्थर से वार करने का रिवाज है। स्थानिया बोली में इस मेले को आषाढ़ी कौथिग के नाम से पुकारा जाता है।
थल मेला
पिथौरागढ़ के बालेश्वर के पास थल मंदिर में लगने वाला यह मेला हर वर्ष 13 अप्रैल को आयोजित किया जाता है। यह मेला सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधि के साथ आयोजित होता है। मेले के दिन व्यापारियों द्वारा अपने सामान को सही दाम में बेचा जाता है। इसलिए इस मेले का व्यापारिक महत्व माना जाता है। किवदंती है की 13 अप्रेल 1940 यानि की जलियावाला बाग़ हत्या कांड के दिन से ही इस मेले की शुरुवात हुई थी। जो की आज भी अपना अस्वित्वा बनाये बैठा है।