उत्तराखंड जिसे देव भूमि के नाम से जाना जाता है। भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जो अपनी कला और संस्कृति के साथ प्रकृति के विहंगम दृश्यों और धार्मिक अनुष्ठानों के तौर पर जाना जाता है। जिसे धरती के स्वर्ग कहने में कोई बुराई नहीं होगी। प्रकृति की इसी सौन्दर्यता का शुक्रगुजार करने और देवी देवताओं के आह्वान के लिए यहाँ पर भिन्न भिन्न प्रकार के लोकपर्व एवं मेलों को मनाएं जाने का प्रावधान रहा है। उन्ही रीती रिवाजों को जीवंत रखते यहाँ के निवासी त्यौहारों को बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मानते है। उत्तराखंड क्लब के आज इस लेख के माध्यम से हम आप लोगो के साथ उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व के बारें में जानकारी साझा करने वाले है। सभी त्यौहारों के बारें में जानने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व
- लोकपर्व फूलदेई का त्यौहार
- कंडाली महोत्सव
- घी संक्रांति का त्यौहार
- लोकपर्व खतडुवा
- लोकपर्व चैतोल
- विश्वकर्मा दिवस
- गणेश चतुर्थी महोत्सव
- नंदा देवी महोत्सव
- प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे
- लोकपर्व सातूं-आठू
1.- लोकपर्व फूलदेई का त्यौहार
देश के हर राज्य की तरह उत्तराखंड राज्य का भी सांस्कृतिक और पारम्परिक तौर पर काफी महत्व है। उत्तराखंड को धरती का स्वर्ग कहो या प्रकृति का वरदान बात एक ही होगी। यहाँ प्राकृतिक सौन्दर्यता के साथ साथ भिन्न भिन्न प्रकार के फूल पते खिलते है। जैसा की हम सभी इस बात से भलीभांति परिचित है की प्रकृति हर ऋतु में अपना रंग धारण करती है और अपनी खूबसुरता का प्रदर्शन करती है। उत्तराखंड प्राकृतिक खूबसुरता का एक जगमाता उदाहरण है। जब प्रकृति वसंत ऋतु में प्रवेश करती है तो प्रकृति की खूबसूरती का कोई ठिकाना नहीं होता। यह हरे भरे दिखने के साथ साथ हजारों प्रकार के फूलों से चमचमाती है। प्रकृति के इस रूप का शुक्रगुजार करने के लिए उत्तराखंड के निवासियों द्वारा लोकपर्व फुलदेई को मनाया जाता है।
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2.- कंडाली महोत्सव
कंडाली महोत्सव भारत के उत्तराखंड राज्य का मुख्या त्यौहारों में से एक है जो की पिथौरागढ़ जिले में बड़ी धूम से मनाया जाता है। महिलाओं और पुरषों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्तराखंड संस्कृति का एक अंग है। इसमें सभी लोग उत्तराखंड की पारम्परिक वस्त्रों को धारण करके बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मानते है। किदवंतियों के अनुसार यह पर्व हर 12 साल में एक बार मनाया जाता है। बताया जाता है यह पर्व कंडाली पौधे ( एक विशेष प्रकार का फूल पौधा जो 12 वर्ष में एक बार खिलता है ) के खिलने के दौरान मनाया जाता है। पौधें के 12 वर्ष बाद खिलने की ख़ुशी में कंडाली महोत्सव का आयोजन किया जाता है। कंडाली पुष्प पर हर साल एक फूल खिलता है और 12 वर्षों में 12 फूल खिल जाने के समय को बड़ा ही महत्व दिया जाता है।
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3.- घी संक्रांति का त्यौहार
घी संक्रांति त्यौहार उत्तराखंड में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहारों में से एक है। जैसा की हम सभी लोग जानते ही है की उत्तराखंड प्रकृति की गोद में बसा एक राज्य है। प्रकृति की रचनाओं और उसकी सुंदरता का आभार प्रकट करने के लिए यहाँ त्यौहार मनाएं जाने का प्रचलन शुरू से ही रहा है।
जब नई नई लहराती हुई सुन्दर सी दिखने वाली फसल पर बालिया लगने लग जाती है तो उसकी ख़ुशी और अच्छी फसल की कामना करते हुई हर साल घी संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। जिसे कई स्थानिया बोलियों में घी त्यार, घ्यू त्यार या ओलगिया के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व में एक है|
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4.- लोकपर्व खतडुवा
उत्तराखंड प्रकृति के साथ सीधा संबंध को दर्शाता है। जैसा की आप सभी लोग जानते ही है की हमारी धरती और पर्यावण पूरे वर्ष भर में चार ऋतुओं को बदलती है। उत्तराखंड राज्य में प्रकृति के हर ऋतू आगमन पर विशेष पर्वों को मनाये जाने का प्रावधान रहा है। जिनमे से एक है खतडुवा पर्व जो की शीत ऋतू के आगमन पर हर वर्ष हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। खास तौर पर इसे उत्तराखंड राज्य के कुमॉऊ में अधिक मनाया जाता है। शीत ऋतू आगमन पर यहाँ के लोग अपने पालतू जानवरों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करते है। आशा करते है की आपको खतडुवा पर्व क्या होता है के बारें में जानकरी प्राप्त हो गई होगी।
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5.- लोकपर्व चैतोल
चैतोल एक तरह का लोकपर्व होता है जो की भाई द्वारा अपनी बहन को भिटौला देने के प्रचलन का प्रतिक माना जाता है। हर साल मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व में से एक है। बताना चाहते है की यह पर्व मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र में मनाया जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक तौर पर भी चैतोल पर्व का बड़ा ही महत्व माना जाता है। लड़की के मायके में बनाये गए स्वादिष्ट पकवानों को भिटौला कहा जाता है और हर वर्ष भाइयों द्वारा इसे अपनी बहनों को ससुराल में देने का प्रचलन रहा है।
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6.- विश्वकर्मा दिवस
हमारी ये पूरी पृथ्वी और ये सृष्टि भगवान की रचना है। हवा,पानी, आग, मिट्टी ये सभी भगवान की देन है। हम इंसानों का काम तो केवल इनका उपयोग करके नवनिर्माण करना है। भगवान विश्वकर्मा जी जिन्होंने सृष्टि के अधिकांश चीजों का नर्माण किया है। जिन्हे सृष्टि के सबसे बड़े निर्माण कर्ता और वास्तुकार के नाम से भी जाना जाता है उनके जन्म दिवस के अवसर पर विश्वकर्मा दिवस मनाया जाता है। निमार्ण कार्य करने के लिए औजारों की जरूरत होती है और औजारों के गुरु को गुरु विश्वकर्मा कहलाते है। विश्वकर्मा देवताओं के वास्तुकार हुवा करते थे। देवताओं की वस्तुओं और औजारों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ही किया करते थे। यह उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व में एक है|
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7.- गणेश चतुर्थी महोत्सव
गणेश चतुर्थी मुख्या रूप से भगवान गणेश जी के जन्म दिवस को ही कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में हर पर्व की तरह गणेश चतुर्थी को भी बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल भी सभी लोग बेसब्री से भगवान गणेश जी के जन्म दिवस गणेश चतुर्थी का इंतजार कर रहे है। जैसा की हम सभी लोग जानते ही है की भगवान शंकर के पुत्र गणेश थे। जो की गणपति एवं विनायक और विघ्नहर्ता के नाम से भी जाने जाते है। उनके जन्म दिवस के अवसर पर गणेश चतुर्थी मनाये जाने का प्रावधान रहा है।
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8.- नंदा देवी महोत्सव
नंदा देवी महोत्सव उत्तराखडं के निवासियों द्वारा बड़े ही हर्ष और उल्लास के मनाये जाने वाले मेलों में से एक है। नंदा देवी महोत्सव माँ नंदा को समर्पित है। हिमालयी क्षेत्र में माँ नंदा का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए हर वर्ष धूम धाम से नंदा देवी महोत्सव मनाया जाता है। किदवंतियों के अनुसार माँ नंदा और सुनंदा दो बहने थी। जिनकी सदियों साल पहले से पूजा की जाती है जिसका उल्लेख पुराणों में भी देखने को मिलता है। स्थानिया लोगों की मान्यता है की देवी नंदा हिमालय की सुपुत्री है और माँ दुर्गा के नवरुपों से एक है। जो की हमेश इस क्षेत्र के निवासियों की रक्षा करती है |
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9.- प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे
उत्तराखंड में हर त्यौहार को मानाने के पीछे कुछ न कुछ ऐतिहासिक पहलु के साथ साथ धार्मिक महत्व जुड़ा हुआ होता है। यहाँ पर हर त्यौहार को किसी भगवान, देवी-देवताओं के नाम या प्रकृति के नए रूप का आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है स्याल्दे उन्हीं त्यौहारों में से एक है। मान्यता के अनुसार आज के दिन अपने देवी देवताओं को भोग लगा कर स्थानिया लोगो द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी परम्परागत यादों को संजोता यह पर्व बिखौती त्यौहार, स्याल्दे बिखौती मेला, स्याल्दे मेला, आदि नामों से जाना जाता है। हर साल यह पर्व उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे क्षेत्र में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। स्थानिया क्षेत्र के आस पास के गावों द्वारा हाथ से हाथ मिला कर और कदम से कदम मिला कर इस पर्व का आयोजन किया जाता है।
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10.- लोकपर्व सातूं-आठू
सातूं-आठू उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है। बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाएं जाने वाले इस त्यौहार में देवी गौर जी के साथ महेश जी की पूजा की जाती है। सातूं-आठू नाम पड़ने के पीछे मान्यता है की सप्तमी को माँ गौरा ससुराल से रूठ कर अपने मायके चले जाती है तथा अष्टमी को भगवान महेश जी उन्हें लेने वह आते है। इसलिए इस पर्व को सातूं-आठू पर्व के नाम से जाना जाता है। सप्तमी और अष्टमी के दिन लोगों द्वारा गौरा महेश की प्रतिमा बनाई जाती है। सप्तमी के दिन माँ गौरा की सुन्दर सी प्रतिमा बना कर मक्का, तिल, और बाजरे के पौधें की सहायता से सजाया जाता है। ठीक उसी क्रम में अगले दिन भगवान महेश की प्रतिमा बनाई जाती है। आस्था और भक्ति का प्रतिक यह पर्व उत्तराखंड के सभी जिलों में उत्सव के साथ मनाया जाता है।
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