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उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलनकर्ता

by Surjeet Singh

उत्तराखंड का असित्वा  बनायें रखने में एवं राज्य को  खास पहचान दिलाने में राज्य के महान लोंगो का योगदान अविश्वसनीय एवं अकल्पनीय है।  देवभूमि में पले इन महान लोगों ने उत्तराखंड को देवभूमि बनायें रखने में अपने बहुमूल्य प्राण निछावर किये है।  आज जब भी उनकी कहानियों एवं योगदान को पढ़ने का  समय  मिलता है तो कोमल ह्रदय से केवल एक ही आवाज निकलती है की ये महान लोग न केवल किताब के पन्नो में ही नहीं अपितु हमारे ह्रदय में भी जीवंत है।  वाकई में इन महान आंदोलनकर्ता के योगदान को भूल पाना असम्भव है।  आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलनकर्ताओं के बारें में बताने वाले है।

  1. गौरा देवी
  2. सुंदरलाल बहुगुणा
  3. सच्चिदानंद भारती
  4. जयानंद भारती
  5. कल्याण सिंह रावत
गौरा देवी

उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलन चिपको आंदोलन की महान नायिका गोरा देवी  रैंणी गाँव की रहने वाली थी. प्रकृति प्रेमी के करण वे जंगलों को अपना मायका मानती थी। वनों की  अत्यधिक कटाई होने के करण उन्हें दुःख हुवा और उन्होंने लोगों के साथ मिलकर वनों की कटाई के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा जिसे  चिपको आंदोलन का नाम दिया गया।  आंदोलन में पेड़ों को बाँहों में भर कर उनको  रक्षा सूत्र में  बंधा गया। उनके इस अनमोल एवं साहसिक कार्य को चिपको आंदोलन के माध्यम से याद किया जाता है।

सुंदरलाल बहुगुणा

उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलनकर्ताओं में सुंदरलाल बहुगुणा का नाम सर्वश्रेष्ठ स्थान पर  आता है।  प्रकृति प्रेमी एवं प्रकृति रक्षा इनके जीवन का मुख्या आधार  था।  सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9  जनवरी 1927  को मरोड़ा नामक स्थान पर हुवा।  सुंदरलाल बहुगुणा जी की शिक्षा के बारें बात करें तो इन्होने लाहौर से बी,ए की शिक्षा पूर्ण की।  जिसके बाद वह टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल में दलित बच्चों को शिक्षा देते थे।  उसी समय बाहरी लोगों द्वारा जंगल पर अतिक्रमण करके जंगल की कटाई करना शुरू कर दिया था।  प्रकति से प्रेमी होने के कारण उन्हें यह सब देखा नहीं गया और उन्होंने चिपकों नामक आंदोलन में भागीदारी दी।  तब से वह विश्वभर में वृक्ष मानव के नाम से भी जाने जाते है।  चिपकों आंदोलन में इनके इस अहम् योगदान की कल्पना कर भी मुश्किल है।

सच्चिदानंद भारती

पर्यावरण रक्षा एवं प्रकृति रक्षा के लिए पहचाने जाने वाले सच्चिदानंद भारती पाणी रखों आंदोलन के प्रणोता है।  पर्यावरण रक्षा के लिए किये गएँ उल्लेखनीय कार्यों के वजह से यह पूरे देश भर में उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलनकर्ताओं के रूप में जाने जाते है।  पाणी रखों आंदोलन उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के उपरेखाल गांव का मुख्या आंदोलन है।  जिसमे गांव में पाणी की समस्या होने के कारण शिक्षक सच्चिदानंद भारती द्वारा पाणी रखों आंदोलन की शुरुवात की गई।  जिसमें उन्होंने अपना अहम् योगदान दिया।  आज के समय में केवल गांव के लोगों को ही नहीं अपितु आस पास के अन्य गांव में भी पानी की भरपूर पूर्ति होती है।  उन्हने पानी के रोकथाम के लिए चालखाल बनाने का परम्परागत   तरीका अपनाने की कही।

कल्याण सिंह रावत

प्रकृति से प्रेम रखने वाले कल्याण सिंह रावत  जी मैत्री आंदोलन के जनक है।  जिनका मानना है की प्रकृति की रक्षा करके ही हम लोग अपने जीवन के साथ आने वाली पीढ़ी का जीवन भी बचा सकते है।  मैत्री आंदोलन नव दंपति द्वारा अपने विवाह को यादगार बनाने में पेड़ों को लगाया जाता है एवं उनकी रक्षा करने का वचन लिया जाता है।  वाकई में यह पहल उत्तराखंड को सर्वश्रेठ बनाने में अपनी भूमिका अदा कर रही है।  पर्यावरण और मानवता को भावनात्मक दृष्टि से जोड़ने के लिए इस मुहीम का संचालन किया गया।  जिससे की मनुष्य को प्रकृति के प्रति प्रेम एवं रक्षा की भावना जागृत हो सकें।  आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत  जी का वाकई में हम सभी लोगों को धन्यवाद करना चाहियें जिनके इस अनमोल पहल से आने वाली पीढ़ी के जीवन को सुरक्षित रखा जा सकता है।

जयानंद भारती

उत्तराखंड में रीती रिवाजों का प्रचलन सदियों से ही रहा है।  कुछ रीती-रिवाज बाहरी लोगों के आगमन से बने तो कुछ रिवाज स्थानिया लोगों के  कार्य प्रचलन से व्यवहार में आएं।  उन्ही रीती-रिवाजों में से एक है डोला पालकी, जिसमें विवाह उत्सव में वर वधु को ससुराल जाते समय डोला पालकी में बिठाया जाता है।  यह प्रथा केवल सवर्णों तथा स्थानीय मुसलमान युवक -युवतियां द्वारा अपनाई जाती थी।  डोला पालकी उठाने का कार्य शिल्पकार लोगों को ही दिया जाता था।  लेकिन शिल्पकारों को ही इस प्रथा से वंचित रखा गया था।  जिसके लिए जयानंद भारती द्वारा डोला पालकी नामक आंदोलन शुरू किया गया।  जिनके प्रयासों से ही यह प्रथा सभी के लिए एक समान बनाई गई।  हालाकिं आज के समय में यह प्रथा समाप्ति की ओर है।  लेकिन जयानंद भारती द्वारा इस अनमोल कार्य के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा।

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