उत्तराखंड की कला और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए हर साल त्यौहार एवं मेला आयोजन का रीति रिवाज रहा है। और ये रीती रिवाज सदियों से चली आ रही है। जिनका अपने आप ऐतिहासिक महत्व रहता है। उन्ही त्यौहारों में से एक है प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे जो की उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे के बारें में और स्याल्दे के महत्व और इतिहास के बारें में जानकारी देने वाले है। सम्पूर्ण जानकारी के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे के बारें में
उत्तराखंड में हर त्यौहार को मानाने के पीछे कुछ न कुछ ऐतिहासिक पहलु के साथ साथ धार्मिक महत्व जुड़ा हुआ होता है। यहाँ पर हर त्यौहार को किसी भगवान, देवी-देवताओं के नाम या प्रकृति के नए रूप का आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है स्याल्दे उन्हीं त्यौहारों में से एक है। मान्यता के अनुसार आज के दिन अपने देवी देवताओं को भोग लगा कर स्थानिया लोगो द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी परम्परागत यादों को संजोता यह पर्व बिखौती त्यौहार, स्याल्दे बिखौती मेला, स्याल्दे मेला, आदि नामों से जाना जाता है। हर साल यह पर्व उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे क्षेत्र में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। स्थानिया क्षेत्र के आस पास के गावों द्वारा हाथ से हाथ मिला कर और कदम से कदम मिला कर इस पर्व का आयोजन किया जाता है।
प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे कब मनाया जाता है
हिन्दू पंचांग में हर त्यौहार को किसी निश्चित समय में मनाये जाने का प्रावधान रहा है। इसी प्रकार से हिन्दू पंचांग के अनुसार स्याल्दे हर वर्ष विषुवत संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इसी लिए इसे विषुवत संक्रांति या विशुवती त्यौहार के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है की हर वर्ष जिस दिन भगवान सूर्यदेव अपनी श्रेष्ठ राशी मेष राशी में विचरण करते हैं उस दिन विषुवत संक्रांति मनाई जाती है। त्यौहार वर्ष में दो बार मनाने का रिवाज रहा है। प्रथम पर्व चैत्र मास की आखरी तारीख से शुरू होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार नए वर्ष की शुरुवात से ही इस पर्व को मनाया जाता है। और द्वितीय पर्व वैशाख माह की पहली तिथि को आयोजित किया जाता है।
स्याल्दे कब है 2023
जिस तरह से भारतवर्ष में किसी भी पर्व का बड़े बेसब्री से इन्तजार किया जाता है। ठीक उसी तरह से स्याल्दे त्यौहार का भी उत्तराखंडवासी बड़ी बेसब्री से इन्तजार करते है। हिन्दू पंचाग के अनुसार 2023 में स्याल्दे लोकपर्व 14 अप्रैल को मनाया जायेगा। 14 अप्रैल को फिर स्याल्दे का पर्व अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करने वाला है।
प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे किस तरह से मनाया जाता है
लोक पर्व स्याल्दे के दिन सभी परिवारों द्वारा देवी देवताओं की पूजा करके उन्हें पारम्परिक तौर पर भोग लगाया जाता है। आज के दिन स्नान का बड़ा महत्व माना गया है। इसलिए अपने दिन की शुरुवात सभी लोगों द्वारा स्नान करने से की जाती है। मान्यता है की आज के दिन स्नान न करने वाले ब्यक्ति कुम्भ स्नान के लिए नहीं जा सकते।
आज के दिन के स्नान से विषों का प्रकोप नहीं रहता है। आज के दिन गांव के सभी लोगों द्वारा मिल जुल कर सांस्कृतिक नृत्य का आयोजन किया जाता है तथा महिलाओं द्वारा पारम्परिक वस्त्र धारण करके लोक नृत्य झोडे, चांचरी, छपेली आदि में भाग लिया जाता है। इस के बाद शुरू होता है स्याल्दे मेले का आयोजन जिसमें सभी भक्तगणों द्वारा मंदिर में भगवान की सभ्य तरीके से हर्ष उल्लास के साथ अर्चना की जाती है।
स्याल्दे, बिखौती मेला आयोजन
उत्तराखंड के द्वाराहाट को सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। हर साल चैत्र माह में आयोजित होने वाला बिखौती मेला हजारों भक्तों को अपनी और आकर्षित करती है। नये वर्ष के साथ ही मेले की तैयारियां अपने जोर शोर पर देखने को मिल जाती है। स्याल्दे भव्य मेला द्वारहाट से आठ किमी० की दुरी पर स्थित प्रसिद्ध मंदिर विभाण्डेश्वर में लगता है। विभाण्डेश्वर मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है। स्याल्दे को प्रमुख सांस्कृतिक पहचान मिलती है यहाँ की ओढ़ा भेटने की रस्म से।
माना जाता है की दो गावों के बीच खूनी संघर्ष होने के कारण हारे हुवे गावो के सरदार का सिर काट कर गाड़ दिया। स्मृति के रूप में रखे गए पत्थर को ओढ़ा कहा जाता है। और ओढ़े पर चोट मारकर आगे बढ़ने की रस्म को ओढ़ा भेटना कहते हैं यह एक मुख्य रस्म मानी जाती है। इसमें आस पास के 40 गांव के लोगों द्वारा हिस्सा लिया है। और गावों के समूहों को दल के नाम से जाना जाता है जो की आल, गरख, नोज्युला के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे का महत्व
अपनी सांस्कृतिक बिरासत को जीवंत रखता स्याल्दे पर्व का अपने आप में ही काफी बड़ा महत्व माना जाता है। जहाँ हजारों लोगों को एकत्रित करता स्याल्दे पर्व हर साल नई यादों को संजोता है। वही दूसरी तरफ यह पर्व चालीस गावों की एकता को बनाये रखता है। आस्था और भक्ति से जुड़ें इस पर्व में भक्तों द्वारा देवी देवताओं से अपने सफल जीवन और प्रकृति रक्षा की कामना की जाती है।