उत्तराखंड की कला और संस्कृति को समझ पाना बहुत मुश्किल है। कभी प्रकृति के नये रूप के लिए यहाँ त्यौहारों और मेलों का आयोजन किया जाता है तो कभी देवी देवताएँ के आह्वान के लिए यहाँ पर विभिन्न पर्व मनाएं जाने का प्रावधान है। देवीय शक्तियों के विश्वास पात्र यहाँ के लोंगो द्वारा सदियों से मेलें मनाये जाते है। उन्ही मेलों में से एक है सिद्धबली मेला जो की हर हर्ष बड़ी ही भक्ति भावना के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। उत्तराखंड क्लब के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ सिद्धबली मेला के बारें जानकारी देने वाले है।
सिद्धबली जयंती मेला के बारें में
सिद्धबली जयंती मेला उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में से एक है जो की उत्तराखंड के कोटद्वार शहर में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । तीन-दिवसीय मनाएं जाने वाला यह मेला कोटद्वार में स्थित खोह नदी के किनारे पर आयोजित किया जाता है। जो की बाबा सिद्धबली के जन्मदिवस की ख़ुशी के रूप मनाया जाता है। मान्यता है की भगवान हनुमान जी की पूजा के करने से मनुष्य के सभी दोष दूर हो जाते है और घर में शांति के अलावा सुख समृद्धि बानी रहती है। इसलिए सिद्धबली बाबा जयंती का विशेष महत्व माना जाता है। पौड़ी के कोटद्वार क्षेत्र में लगने वाला यह भव्य मेला हजारों श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करता है।
सिद्धबली जयंती मेला कब आयोजित किया जाता है
हर वर्ष की भांति इस साल भी सभी भक्तगण सिद्धबली जयंती मेला आयोजन के लिए बेसब्री से इन्तजार कर रहे है। बताना चाहेंगे की हर साल लगने वाला यह भव्य मेला 13 दिसंबर से 15 दिसंबर के मध्य बड़ी ही धूम धाम और वेद ऋचाओं के साथ चलता है। लेकिन कभी कभी समिति द्वारा आयोजन दिनांक में परिवर्तन भी किया जाता है। यहाँ पर 1-7 जनवरी के मध्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें सभी स्थानिया लोगों के साथ आस पास में रहने वाले गांव के लोग भी शामिल होते है।
सिद्धबली जयंती मेला किस तरह से मनाया जाता है
मेले का आयोजन समिति द्वारा किया जाता है। मेले के कुछ दिन पहले से ही सिद्धबली बाबा मंदिर को सजा कर एक नया रूप दिया जाता है। रंग बिरंगी लाइटों के साथ चमचमाती मंदिर शृद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करती है। मंदिर के साथ ही शहर निवासियों द्वारा अपने घरों को भी दिवाली के तरह सजा कर मेले की शोभा बढ़ाई जाती है। आस पास के लोंगो के अलावा अन्य राज्य के श्रद्धालुओं द्वारा भी जम कर मेलें में हिस्सा लिया जाता है। बाबा सिद्धबली के जन्म अवसर पर शोभायात्रा (झांकियां) निकाली जाती है। मेले की शुरुवात सुबह से ही शुरू हो जाती है।भगवान जगन्नाथ की झांकी के साथ आर्मी का बेंड और अन्य कई स्थानिया कीर्तन मंडली भी शोभायात्रा में अपना योगदान देती है।