संगीत पौराणिक काल से उत्तराखंड का एक हिस्सा रहा है। राज्य को एक नई पहचान दिलाने में सगीत की अहम् भूमिका रही है। उत्तराखंड के संगीत में राज्य की संस्कृति एवं कला की अनोखी छवि देखने को मिल जाती है। जिसमें लोगों के रहन सहन के साथ उनके परिश्रम को पिरोया गया है। उसी संगीत जगत की एक महान लोकगायिका रह चुकी मीना राणा उत्तराखंड की प्रमुख लोकगायिका में एक है। उत्तराखंड के संगीत में इनका अहम् योगदान है। आज के इस लेख में हम प्रसिद्ध लोकगायिका मीना राणा के जीवन परिचय के बारें में बात करने वाले है।
वास्तविक नाम | मीना सिंह राणा |
प्रचलित नाम | सुर कोकिला |
जन्म | 24 मई 1975 |
जन्म स्थल | दिल्ली, भारत |
प्रसिद्धि का कारण | लोकगायिका |
पति का नाम | संजय कुमोला |
मीना राणा प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मीना राणा का जन्म 24 मई 1975 को देश की राजधानी दिल्ली जैसे मशहूर शहर में हुवा। लेकिन उनका परिवार उत्तराखंड से सम्बंधित होने के कारण मीना जी का लगाव उत्तराखंड के साथ लगा रहा। उनकी शिक्षा दिल्ली से ही शुरू हुई। उन्होंने बटलर मेमोरियल गर्ल्स सीनियर सेकेंड्री स्कूल में दाखिला लिया और अपनी पढाई शुरू की। उसके बाद मीना जी अपनी बहन उमा राणा के साथ मसूरी चले गई और उन्होंने वहाँ से अपनी इंटर मीडियट की पढ़ाई पूरी की। जबकि वह अपनी स्नातक पढ़ाई के लिए दुबारा दिल्ली शहर लौट आयें। पढ़ाई लिखाई में अच्छे होने के साथ साथ वह संगीत प्रेमी भी थें। इसलिए गाना गाने का शौक उन्हें बचपन से ही था।
मीना राणा संगीतमय जीवन की शुरुआत
जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की मीना राणा जी को बचपन से ही सगीत का शौक था। इसलिए उन्होंने अपने बिद्यार्थी जीवन से ही गीतों को गुनगुनाना शुरू कर दिया था। आवाज में मधुरता शुरुवात से ही उनके साथ थी। लेकिन इस बात में कोई शंका नहीं है की उन्होंने कभी संगीत की शिक्षा प्राप्त की। मीना जी लता मंगेशकर जी के गाने सुना करती थी वही से उन्हें गाने का शौक हुवा और कब वह संगीत की दीवानी हो गई पता ही नहीं चला। गाने गुनगुनाने से उन्होंने अपने अंदर के कौशल को पहचाना और निरंतर प्रयास करते रहे।
सन 1991 की बात है मीना जी का सगीतमय जीवन की शुरुआत होने लगी। उनका पहला गाना नोनी पिछोड़ी जनता के सामने आया जिसमें वह सुर्ख़ियों में रही। बताना चाहेंगे की मीना जी का यह पहला गाना था जो सगीत जगत के महान दिग्गज राम लाल जी के निर्देशन में प्रकाशित हुवा। उसके बाद मीना राणा के जीवन में एक नया बदलाव देखने को मिला जो उनके कार्य के प्रति लगन और प्रसिद्धि का कारण बना। धीरे धीरे मीना जी को नए नए गानों के लिए संपर्क किया गया और वह अपने जीवन में आगे बढ़ते चलें गएँ।
बताना चाहेंगे की उत्तराखंड की स्वर कोकिला मीना राणा आज पूरे देश में अपनी मधुर आवाज के बदौलत से मशहूर है। वह अभी तक 500 से भी अधिक गढ़वाली और कुमाऊंनी गानों की आवाज रह चुकी है। आज भी उनके गानों में मधुर व सुरीलापन देखने को मिलता है। उनके गानों में उत्तराखंड की कला और संस्कृति के साथ मानवीय जीवन का दर्द और हर्ष देखने को मिलता है।
मीना राणा के प्रसिद्ध गीत
वैसे तो मीना जी ने अभी तक बहुत से प्रसिद्ध गाने गायें है। लेकिन कुछ ऐसे गाने भी है जो प्रसिद्ध होने के साथ सदाबहार भी है। हम नीचे मीना राणा जी के कुछ प्रसिद्ध गानों की सूची दे रहे है। इन सभी गानों में उत्तराखंड की संस्कृति के साथ परम्परा को दर्शाया गया है
- रामी बौराणी
- घुघूती घुराणी लगे म्यरा मेता की
- भालू लगदू भानुली
- नचाड़ खूटी
- सुन ले दगिड्या
- सूरजु मेरा प्यारा
- तेरा घुंगरू सुनी
- गढ़वाली छोड़ दे भिन्ना
- बोल हिरा बोल
- ट्यून की डालों
- सुन ले स्याली मेरी
- हे गेल्यानी मेरी
मीना राणा जी को प्राप्त प्रमुख पुरुष्कार
2010 में पल्या गांव का मोहना के लिए उत्तराखंड सिने पुरुष्कार दिया गया।
2011 में हिट ओ भीना के लिए उत्तराखंड सिने पुरुष्कार दिया गया।
2011 में औ बुलानु यो पहाड़ा के लिए उत्तराखंड सिने पुरुष्कार दिया गया।
2012 में हम उत्तराखंडी छा के लिए उत्तराखंड सिने पुरुष्कार दिया गया।
2013 में ऐ जा रे दगड़्या के लिए उत्तराखंड सिने पुरुष्कार दिया गया।