देवभूमि उत्तराखंड केवल प्राकृतिक सौन्दर्यता और पर्यटन स्थलों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है। यह अपनी परम्परिक संस्कृति और रीती रिवाजों के लिए भी पूरे देश – विदेश में मशहूर है। यहाँ के रीती रिवाज और रस्में सभी के मन बहला देती है। इसलिए आज कल हर कोई उत्तराखंड की संस्कृति को अपनाना चाहता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से आपके साथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहार कंडाली महोत्सव के बारें में जानकारी साझा करने वाले है। यदि आप कंडाली महोत्सव के महत्व और इतिहास के बारें में जानना चाहते है। तो इस लेख के साथ अंत तक बने रहे।
कंडाली महोत्सव क्या होता है
कंडाली महोत्सव भारत के उत्तराखंड राज्य का मुख्या त्यौहारों में से एक है जो की पिथौरागढ़ जिले में बड़ी धूम से मनाया जाता है। महिलाओं और पुरषों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्तराखंड संस्कृति का एक अंग है। इसमें सभी लोग उत्तराखंड की पारम्परिक वस्त्रों को धारण करके बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मानते है। किदवंतियों के अनुसार यह पर्व हर 12 साल में एक बार मनाया जाता है। बताया जाता है यह पर्व कंडाली पौधे ( एक विशेष प्रकार का फूल पौधा जो 12 वर्ष में एक बार खिलता है ) के खिलने के दौरान मनाया जाता है। पौधें के 12 वर्ष बाद खिलने की ख़ुशी में कंडाली महोत्सव का आयोजन किया जाता है। कंडाली पुष्प पर हर साल एक फूल खिलता है और 12 वर्षों में 12 फूल खिल जाने के समय को बड़ा ही महत्व दिया जाता है
त्यौहार का नाम | कंडाली महोत्सव |
मानाने के स्थान | पिथौरागढ़ |
संबंधित | कंडाली फूल |
मानाने का समय | अगस्त/सितंबर/अक्टूबर |
अवधी | 12 वर्षों में एक बार |
कंडाली महोत्सव कब मनाया जाता है
जैसे की हम पहले ही बता चुके है की प्रसिद्ध त्यौहार कंडाली महोत्सव 12 वर्ष में एक बार कंडाली पुष्प खिलने के अपरान्त मनाया जाता है।। और जब भी 12 वर्ष के दौरान कंडाली पुष्प अच्छी तरह खिल जाता है तब उसके खिलने की ख़ुशी में कंडाली महोत्सव मनाया जाता है। और यह पौधा अगस्त से अक्टूबर माह के बीच खिलता है। इसलिए प्रसिद्ध त्यौहार कंडाली महोत्सव का आयोजन भी इन्ही महीनों में किया जाता है।
कंडाली महोत्सव कैसे मनाया जाता है
कंडाली महोत्सव को पिथौरागढ़ जिले के लोगों द्वारा बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्थानिया लोगों द्वारा इस दिन अपने देवी देवताओं की पूजा की जाती है। बताया जाता है की कंडाली के पुष्प के खिलने के बाद एक विजय नृत्य किया जाता है। जिसमें महिलाओं द्वारा एक जुलुस का नेतृत्व किया जाता है।
प्रत्येक एक रिल से लैस होता है। तलवार और ढाल से लैस बच्चे और पुरुषों द्वारा उनके पीछे-पीछे आया जाता है। उनके गाने और नृत्य के संगीत से पूरी घाटी गूंज उठती है। और जैसे ही उनके द्वारा खिलने के करीब पहुंचा जाता है। वे लोग युद्ध की धुन बजाना शुरू कर देते है। और फिर युद्ध शुरू हो जाता है। महिलाओं द्वारा झाड़ियों पर हमला किया जाता है और पुरुष द्वारा झाड़ियों को युद्ध लूट के रूप में ले जाया जाता है। विजय रोई जाती है और देवी देवताओं से प्रार्थना करते हुए आकाश की ओर चावल उछाले जाते है। उसके बाद उत्सव का समापन एक दावत के साथ किया जाता है।
कंडाली महोत्सव का इतिहास
अभी तक हम लोग प्रसिद्ध त्यौहार कंडाली महोत्सव के बारें में तो जान चुके है। लेकिन हर किसी पर्व के तरह भी इसका अपना एक इतिहास रहा है। जिसक वर्णन लोककथाओं में भी देखने को मिल जाता है। बताया जाता है की काली नदी के किनारे से लोट रहे सैनिकों ने कंडाली पौधे के पीछे छुपकर लूट लिया था। महिलाओं ने उनका विरोध करते हुए काडंली के पौधे को नष्ट कर दिया। इसलिए कंडाली को अशुभ पौधा मन जाता है और उसका नाश किया जाता है।
कंडाली त्यौहार का महत्व
काडंली महापर्व का स्थानीय लोगों के जीवन में बड़ा ही महत्व माना गया है। कहा जाता है की इस पौधे का नाश करने के साथ साथ उन्हें यह हौसला मिलता है की वह हर युद्ध को जीत सकते है। आज के दिन वे लोग अपने देवी देवताओं की पूजा करते है और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने की कामना करते है। बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ लोगों द्वारा प्रसिद्ध त्यौहार कंडाली महोत्सव का आयोजन किया जाता है और विजयी नृत्य के साथ उत्सव का समापन एक विशेष दावत के साथ किया जाता है। जिसमे विभिन्न प्रकार के स्थानीय व्यंजनों को परोसा जाता है।