देवभूमि उत्तराखंड को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। प्रकृति के गोद में बसा उत्तराखंड तामम प्रकार के आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों एवं पेड़ पौधों का निवास है। यहाँ पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जड़ी बूटियों एवं फूल पत्तियों का आयुर्वेद में बड़ा ही महत्व माना जाता है। उन फूल वृक्षों में से एक है काफल फल जो की उत्तराखंड का पारम्परिक फल होने के साथ साथ उत्तराखंड में बहुत प्रसिद्ध भी है। उत्तराखंड क्लब के इस लेख में हम आपको काफल फल एवं उसके उपयोग के बारें में बताने वाले है।
उत्तराखंड पारम्परिक फल काफल
हिमालय के तलहटी में पाए जाने वाला यह पौधा उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के साथ साथ कई अन्य राज्य प्रदेश में भी पाएं जाने वाला एक पौधा है। अपने हरे पत्तियों के बीच में नन्हें से लाल फल को छुपाएं यह पौधा ग्रीष्म ऋतू में फल देता है। चमत्कारी गुणों एवं पोषक तत्वों से भरपूर इसका इसका नन्हा सा फल आयुर्वेद में बड़ा ही उपयोगी माना गया है। ग्रीष्म ऋतू में पाए जाने वाला यह फल शरीर को शीतल बनायें रखने का कार्य करता है।
काफल फल के आयुर्वेदिक उपयोग
वैसे तो ग्रीष्म ऋतू में यह फल हमारें दैनिक जीवन में बहुमूल्य कार्य तो करता ही है। लेकिन एक स्वादिष्ट फल होने के साथ साथ इसका उपयोग आयुर्वेद में बहुत से उत्पाद में दवाई बनाने में भी किया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर यह फल चटनी के रूप में भी उपयोग किया जाता है। प्यारे से दिखने वाले इसके फल का उपयोग ग्रीष्म ऋतू में शरीर को ठंडक पहुंचाने का कार्य करता है।
काफल फल के सेवन से फायदे
जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की काफल एक आयुर्वेदिक एवं औषधीय फल है। इसमें तमाम प्रकार के पोषक तत्वा जैसे बिटामिन, आयरन, मिनरल्स आदि तत्वा पाएं जाते है। जिसके कारण यह हमारें शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक है। ग्रीष्म ऋतू में काफल के सेवन से निम्न प्रकार के लाभ प्राप्त होते है।
- पेट के दर्द निवारण के लिए काफल का सेवन उपयोगी माना जाता है।
- काफल में पाएं जाने वाला एंटी तत्व बुखार रोकथाम का कार्य करता है।
- काफल में एंटीऑक्सीडेंट तत्व पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जो की शरीर की रोगप्रतिरोधक छमता में वृद्धि करता है।
- शरीर में चोट एवं सूजन पड़ने की अवस्था में काफल का कट्फल चूर्ण का लेप के रूप में उपयोग किया जाता है।
काफल फल की मार्मिक कहानी
बहुत साल पहले की है उत्तराखंड के पहाड़ी गावँ में एक गरीब औरत अपनी छोटी सी बेटी के साथ रहती थी। वह औरत मजदूरी एवं दूध दही और शहद के साथ जंगली उत्पादों को बाजारमें बेचकर अपना व अपनी बेटी का भरण -पोषण करती थी। एक बार चैत्र के माह में , वह औरत जंगल से एक टोकरी काफल तोड़ कर लाई और घर के आंगन में रख दिए। और अपनी बेटी को नसीहत देते हुए बोली कि “,इनका ध्यान रखना ,खाना मत ! और काम करने के लिए अपने खेत मे चली गई। छोटी बच्ची ने पूरी ईमानदारी से काफलों की रक्षा करते हुई पेड़ की छाव में सो गई ।लेकिन चैत माह की तेज धूप ने कुछ काफलों को सूखा कर टोकरी को आधा कर दिया ।
जैसे ही उसकी माँ खेत से थकी थुकि घर पहुँची ,तो माँ ने देखा काफलों की टोकरी आधी हो रखी है। माँ को लगा की बेटी ने काफल खा लिए। यही सोचकर , अत्यधिक क्रोध में उसकी आँखें बंद हो गई ।और उसने अपनी फूल सी बच्ची को पूरी ताकत के साथ थप्पड़ मार दिया। धूप में भूख से प्यासी बच्ची , माँ के इस प्रहार को नही झेल पाई और वही मृत्यु को प्राप्त हो गई। बेचारी माँ का रो रो कर बुरा हाल हो गया।
सायंकाल हुई और मौसम में ठंडक आनी शुरू हो गई और टोकरी में रखे काफल नमी के कारण फिर से ताज़े हो गए और टोकरी फिर से भर गई। यह देख औरत को उसकी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप में उस औरत के प्राण भी उड़ गए।
तब से लोककथाओं में कहा जाता है कि वो दोनो माँ बेटियां, चिड़िया बन गई। और आज भी जब पहाड़ों में काफल पकते हैं तब बेटी रूपी चिड़िया बोलती है, “काफल पाको मैं नि चाखो ” अर्थात काफल पके मैंने नही चखे । उसका जवाब माँ रूपी चिड़िया देती है,और बोलती है, ” पुर पुतई पुर पुर ” अर्थात ,मेरी प्यारी बेटी काफल पूरे हैं।