देव भूमि उत्तराखंड की कला और संस्कृति को की अलग ही पहचान है। कभी प्रकृति के नये रूप के लिए यहाँ त्यौहारों और मेलों का आयोजन किया जाता है तो कभी देवी देवताएँ के आह्वान के लिए यहाँ पर विभिन्न पर्व मनाएं जाने का प्रावधान है। देवीय शक्तियों के विश्वास पात्र यहाँ के लोंगो द्वारा सदियों से मेलें मनाये जाते है। उन्ही मेलों में से एक है झंडा मेला जो की बड़े ही हर्ष भक्ति भावना के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
झंडा मेला के बारे में
यह झंडा मेला भारत देश के उत्तराखंड राज्य के राजधानी देहरादून में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर वर्ष यह भव्य मेला होली त्यौहार के पांचवे दिन बाद पंचमी को सुरु किया जाता है। व यह ऐतेहासिक झंडा मेला 15 दिनों तक चलता है यह मेले में हर तीन वर्ष में नया का रोहड़ किया जाता है। एवं 15 दिनों तक चलने वाला यह मेला के द्वौरान झंडे जी की शोभा यात्रा निकली जाती है। इस मेले में स्थानीय व नजदीकी राज्य के लोग जैसे पंजाब , हरियाणा ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश के सभी लोग अपनी महत्वपूर्ण योगदान देते है।
झंडा मेला किस दिन से मनाया जाता हैए कब मनाया जाता है?
यह मेला 350 वर्ष पूर्व सन् 1676 में दून घाटी के सातवे सीख गुरु हर राय के सर्वप्रथम व सबसे बड़े पुत्र श्री गुरुरामराय के द्वारा अपना डेरा देहरादून में लगाया था। यह चैत्र माह की पंचमी से (होली से 5 दिन बाद) शुरू होता है,गुरुरामराय जी का जन्म 1664 में पंजाब के होशियारपुर जनपद के कीरतुर होली के पाँचवें दिन के पश्चात् हुआ था। तभी से दरबार साहिब में ध्वजारोहण ककिया जाता है।