देवभूमि उत्तराखंड केवल प्राकृतिक सौन्दर्यता और पर्यटन स्थलों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है। यह अपनी परम्परिक संस्कृति और रीती रिवाजों के लिए भी पूरे देश – विदेश में मशहूर है। यहाँ के रीती रिवाज और रस्में सभी के मन बहला देती है। इसलिए आज कल हर कोई उत्तराखंड की संस्कृति को अपनाना चाहता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से आपके साथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहार जागड़ा मेला के बारें में जानकारी साझा करने वाले है। यदि आप जागड़ा उत्तराखंड मेला के बारें में जानना चाहते है। तो इस लेख के साथ अंत तक बने रहे।
क्या है जागड़ा मेला उत्तराखंड
बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला जागड़ा मेला जौनसार के प्रमुख लोकदेवता महासू को समर्पित है। यह मेला हनोल में प्रति वर्ष बड़ी ही आस्था और भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है। जागड़ा मेला का अर्थ होता है रात्रि जागरण। उत्तराखंड में देवी देवताओं के आह्वान को जागर कहा जाता है। देहरादून के जौनसार बावर क्षेत्र के टौंस नदी के तट पर लोकदेवता महासू का मंदिर में मुख्य मेला का आयोजन किया जाता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर महासू देवता का रात भर पूजा पाठ ,स्तुति करते हैं। इस मेले में न केवल स्थानिया लोग शामिल होते है बल्कि रंवाई-जौनपुर, हिमाचल के जुब्बल-कोटखाई, आदि राज्य के भक्तगण भी शामिल होते है।
जागड़ा मेला उत्तराखंड का आयोजन कब किया जाता है
हर मेले की तरह इस मेले के आयोजन के लिए भी सभी भक्तगण बड़ी बेसब्री से इन्जार कर रहे है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला यह भव्य मेला हिंदी पंचाग के अनुसार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष को बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। बताना चाहेंगे की जागड़ा मेला का आयोजन 2022 में 30 अगस्त को जायेगा। देहरादून के हनोल में प्रति हर्ष की भाँति इस वर्ष भी भक्तों की जम कर भीड़ इकट्ठा होनी वाली है। समिति द्वारा इसकी तैयारियां शुरू कर दी गई है।
जागड़ा मेला किस तरह से मनाया जाता है
प्रसिद्ध जागड़ा मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है। हर हर्ष जागड़ा मेला का आयोजन बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मेले को चरम आनंद तक पहुंचाने के लिए बावर क्षेत्र के लोगों द्वारा कोई कमी नहीं छोड़ी जाती है। किंवदंती है की हर साल जहाँ इस पर्व में स्थानिया लोग शामिल होते है। वही देश के अन्य राज्य के श्रद्धालुओं द्वारा भी पूरी भक्ति भावना के साथ उत्सव में हिस्सा लिया जाता है।
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की तृतीया एवं चतुर्थी के दिन चलने वाला यह मेला रात्रि के समय में अपना मुख्या रूप धारण करती है। सदियों से चली आ रही जागर परम्परा के द्वारा महासू देवता का आह्वान किया जाता है। आज के दिन श्रद्धालुओं द्वारा उपवास रखा जाता है। पूरी रात भर भक्तों द्वारा महासू देवता की स्तुति की जाती है। पूरी आस्था और भक्ति भावना के साथ सभी लोग इस में सहयोग देते है।
अगले दिन सुबह पुजारी द्वारा देवता की प्रतिमा को यमुना स्नान के लिए बाहर लाया जाता है। सभी भक्तजन देवडोली का दर्शन करते है। यमुना में स्नान के लिए जाते समय लोकवाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ सभी लोग नदी के तट तक जाते है। लेकिन बताना चाहेंगे की महासू देवता की प्रतिमा को उठा कर नदी तट पर ही उतारी जाती है। बीच में डोली को उतारने का कोई प्रावधान नहीं हैं। भक्तजन बारी बारी से कन्धा बदलकर प्रतिमा को नदी तक पहुंचाते है। स्नान कराने के बाद प्रतिमा को पुनः स्थापित किया जाता है और सभी पूजा अर्चना करके सभी लोग भोजन ग्रहण करते है और उपवास को शांत किया जाता है।