Home » Education » प्रसिद्ध गौचर मेला

प्रसिद्ध गौचर मेला

by Surjeet Singh
प्रसिद्ध गौचर मेला

उत्तराखंड भारत  का एकमात्र ऐसा जिला है जिसे मेलों एवं पर्वों का जिला भी कहा जाता है।  मेलों एवं पर्वों का यह एक ऐसा राज्य  है जहाँ पर स्थानिया संस्कृति के साथ भारतीय संस्कृति को एक ही मंच पर प्रदर्शित किया जाता है।  खास तौर पर मेलों का आयोजन किसी धार्मिक एवं पौराणिक महत्व के साथ किसी विशेष व्यक्ति से  जुड़ें यादों को जीवंत रखने के लिए किया जाता है।  उत्तराखंड के उन्हीं प्रमुख मेलों में से एक है गौचर मेला ।  गौचर मेला उत्तराखंड में बड़ी श्रद्धा एवं आस्था भाव के साथ धूम धाम से मनाया जाता है।  आज हम आप लोगों के साथ गौचर मेला के बारें में जानकारी साँझा करने वाले है।

गौचर मेला के बारें में

मेलें मुख्या रूप से संस्कृति का एक अंग होता है।  जिसके माध्यम से स्थानिया लोंगो की कला, संस्कृति, और रहन – सहन के अलावा उनके कौशल के बारें में भी जानकारी मिलती है।  गौचर मेला भी उन्ही मेलों में से एक है जिसमें उत्तराखंड संस्कृति की अनोखी छवि देखने को मिलती है।  प्रसिद्ध गौचर मेला उत्तराखंड के चमोली जिलें में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लाश के साथ मनाया जाता है।  चमोली के निति माणा  घाटी में स्थानिया लोगों द्वारा मेलें को चरम अवस्था प्रदान करने में पूर्ण कोशिश की जाती है।

गौचर मेला हर वर्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस के अवसर पर यानि की 14 नवम्बर को आयोजित किया जाता है जो की एक सप्ताह तक आयोजित होता है।  मेलें में स्थानिया व्यापारियों एवं कलाकारों को मंच मिल जाता है जिसके माध्यम से वह अपने उत्पाद एवं कौशल को प्रदर्शित सकते है।  इसके अलावा यह मेला लोंगो के आपसी सम्बन्ध को भी मजबूत बनता है ।  इसे  राजकीय औद्यौगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेले  का स्थान प्राप्त है।  जिसके माध्यम से  राज्य के  औद्यौगिक विकास के साथ सांस्कृतिक छवि को बढ़ावा मिलता है।

गौचर मेले का इतिहास

मेलें  आयोजन के पीछें ऐतिहासिक एवं धार्मिक विशेषता जरूर जुडी होती है जो की मेला एवं लोकपर्व को जन्म देती है।  जिस भीड़, सभा एवं जमवाडे से स्थानिया लोगों की  कला और व्यापारिक गतिविधियों को परोसा जाता है।  सामान्यता पूर्वजों द्वारा उसे मेले का नाम दिया गया।

गौचर मेलें के इतिहास के बारें में पता चलता है की 1943 में अंग्रेज कमिश्नर मिस्टर बर्नाडी ने मेलें की शुरुवात की।  उस समय यह मेला भारत और तिब्बत के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।  तब से यह मेला 14  नवम्बर को हर वर्ष बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है।

सांस्कृतिक छवि  पिरोता है गौचर मेला

गौचर मेला आज के समय में न केवल व्यापार का मंच बना हुवा है अपितु यह सम्पूर्ण भारत की कला और संस्कृति का रंगमंच है जहाँ पर उत्तराखंड संस्कृति , परम्परा और कला के साथ लोगों के कुशल कौशल को एक सूत्र में पिरोया जाता है।  मेलें में स्थानिया उत्पाद जैसे ऊनि वस्त्र , पारम्परिक वस्तएं , खेल , और इन सभी के अलावा दालें, और अन्य प्रकार की  कई वस्तुएं शामिल होती है। जो की उत्तराखंड की सांस्कृतिक झलक प्रस्तुत करती है।  लोगों के द्वारा पहने पोशाक संस्कृति का अंग होता है जिनके माध्यम से उन्हें एक अलग पहचान मिलती है।

You may also like

Leave a Comment