बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की जीत, की प्रेणा देने वाले महान पर्व को हम दशहरा कहते है। सालों से मनाते आ रहे इस पावन पर्व को हम विजयदशमी के नाम से भी जानते है। दशहरा हमें अच्छे कामों को करने की प्रेणा और बुरे भावनाओं को त्यागने की शक्ति प्रदान करता है। उत्तराखंड क्लब के इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ दशहरा का महत्व और दशहरा का इतिहास के बारें में जानकारी देने वाले है।
दशहरा कब और क्यों मनाया जाता है
दहशरा हिन्दू धर्म का मुख्य त्यौहारों में से एक जो की हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के दशमी को मनाई जाती है।बताया जाता है की इस दिन भगवान श्री राम जी ने रावण जी का वध किया था। असत्य पर सत्य की जीत हुई थी। ठीक उसी प्रकार से माँ दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिन के अपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। दस दिन होने के कारण इसे दशमी कहते है और विजय दशमी के नाम से भी जानते है। बताया जाता है की इस दिन को मानाने का मुख्या कारण आपसी मेल मिलाप को बढ़ाना है। दशहरा हमें सत्य बोलने की प्रेणा देती है। बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक हैं दशहरा। बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं जैसे क्रोध, असत्य,आलस्य, बैर,इर्षा, दुःख आदि को ख़त्म करना सत्य के मार्ग चलना ही हमें दशहरा सिखाती है। हमें हर साल अपने बुरे आदतों को छोड़ कर उनमें विजय प्राप्त करनी चाहिए। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है इसलिए इसे बड़ा ही शुभ दिन माना जाता है जब की अन्य दो शुभ तिथियां चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल है |
2023 में दशहरा कब है
जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की दशहरा हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के दशमी को मनाई जाती है। और इस वर्ष ये शुभ दिन 24 अक्टूबर 2023 को आ रहा है। बताना चाहिँगे की दशहरा नवरात्रि ख़त्म होते ही अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है। रावण एक अहंकारी मिजाज का ब्यक्ति था इस दिन उसका नास हुवा था। ठीक इसी प्रकार से हमें भी अपने अंदर के गलत विचारों एवं भावनाओं को इस त्याग देना चाहिए। सही मायने में उस दिन दशहरा मनाया जायेगा।
दशहरा का महत्व
भारतीय संस्कृति में दशहरा पर्व का बड़ा ही महत्व है। इस बात में कोई शंका नहीं की भारत एक कृषि प्रदान देश है। अच्छी फसल का होना केवल किसानो के लिए ही नहीं बल्कि देशवासियों के लिए भी ख़ुशी की बात होती है। क्योंकि हम सभी जानते है की कृषि के बिना हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते है। आज के दिन जब किसानों की नई फसल रूपी सम्पति जब घर में प्रवेश करती है तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। वह इस को भगवान का आशीर्वाद मानते है और उसकी पूजा करते है। क्योंकि यह उनकी छ: माह की मेहनत का फल होत है ठीक इसी प्रकार से भारत के कई राज्यों में लोग अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुसार नये नये वस्त्र धारण करते है और अपने परिजनों के घर शमी वृक्ष के पत्तों को ले जाया करते है।
उत्तराखंड में दशहरा महोत्सव
उत्तराखंड में दशहरा मानाने का आचरण काफी अलग और खास है। बताना चाहेंगे की कम साधनों के अपरान्त भी यहाँ के लोग एक खास तरह से दशहरा मनाया करते है। दिन की शुरुवात होते ही सभी लोग एक दूसरे को दशहरे की शुभकामनाएं दिया करते है। प्यार प्रेम और आपसी मेल मिलाप तो इनका मुख्या गहना है जो की कभी इनसे दूर नहीं हटता है। लेकिन फिर भी एक दूसरे क साथ बड़े प्रेम भाव से पेश आते है। इस शुभ अवसर पर मिठाई देने का रिवाज ज्यादा प्रचलन में नहीं है लेकिन लोगों द्वारा एक दूसरे के घरों में गाय के घी से बनी स्वादिष्ट पकोड़े जरूर बाँट दिए जाते है।
आज के दिन न केवल लोगों के लिए ही ख़ुशी का दिन होता है बल्कि आज के दिन यहाँ के लोग अपने पालतू जानवरों के लिए झंगोरे की फसल से बने पकवान खिलाया करते है जिसे स्थानिया बोलियों में पिन्डा ( एक तरह का पकवान जिसे पालतू जानवरों के लिए तैयार किया जाता है ) भी कहा जाता है।
शाम शुरू होते ही सभी बच्चों द्वारा एकत्रित होकर लकड़ी और पुराने कपड़ों के माध्यम से रावण का पुतला बनाया जाता है और रावण दहन के बाद लोकगीतों को लगा कर सभी लोग अपना मनोरंजन किया करते है।
यह था हमारा आज का लेख दशहरा का महत्व और इतिहास, एवं उत्तराखंड में दशहरा महोत्सव। आशा करते है की आपको यह लेख जरूर पसंद आया होगा। आपको यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं और यदि आप आगे भी उत्तराखंड से सम्बंधित लेख पढ़ना चाहते है उत्तराखंड क्लब को सब्सक्राइब कर सकते है। यदि आप भी उत्तराखंड से सम्बंधित लेख हम तक पहुँचाना चाहते है तो आप गेस्ट पोस्ट भी लिख सकते है आप हमारें साथ फेसबुक और और इंस्टाग्राम के द्वारा भी जुड़ सकते है।