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उत्तराखंड चैती मेला

by Surjeet Singh

देवभूमि उत्तराखंड अपनी पारम्परिक रीती रिवाजो व रसमो से सम्बंधित है। देवो की भूमि मानी जाने वाले उत्तराखंड राज्य के स्थानीय लोग विभिन्न प्रकार के लोक पर्व, त्यौहार एवं  त्योहारों से सम्बंधित झांकीया व मेले मनाते है। उत्तराखंड के स्थानीय लोग अपनी कला संस्कृति को बनाये रखने के लिए विभिन्न  मेलो का आयोजन किया जाता है। यह मेले मुख्य स्थानीय व ग्रामीण मेले समिति द्वारा निर्धारित तिथि के अनुसार आयोजित किये जाते  है। जिसमे उनके द्वारा अपनी संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है। उन्ही मेलो में  उत्तराखंड  का प्रसिद्ध मेला चैती मेला है।

चैती मेला के बारें में

यह चैती मेला कुमाऊँ क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय प्रसिद्ध मेला है। जो उत्तराखंड राज्य के उधमसिंह नगर जनपद के काशीपुर शहर में आयोजित होता है। यह मेला मुख्य रूप से चैत माह की नवरात्रि में प्रतिवर्ष निर्धारित किया जाता है कुंडश्वरी मार्ग यह  स्थान महाभारत से सम्बंधित है भविष्य में यह स्थान पर बालासुन्दरी  माता का मंदिर स्थापित है। यही स्थान पर ही चैत माह का मेला  आयोजित किया जाता है।

वैसे तो इस मंदिर में रोजाना श्रद्धालु आया करते है लेकिन खास तौर पर चैती मेला के अवसर पर  यहाँ  हजारों की संख्या में दर्शनार्थी आया करते है।  एक तरफ दर्शनार्थी अपने पारम्परिक पोषक  में आते है तो दूसरे तरफ स्थानिया व्यापारी अपने कौशल से निर्मित उत्पाद बेचते हुए इस प्रसिद्ध पर्व की शोभा बढ़ाते है।  थारू जनजाति के लोगों का माता देवी पर अधिक आस्था है।  रिवाज है की थारू जनजाति के नवविवाहित  जोड़ें माँ से आशीर्वाद लेने जरूर पहुंचते है।

मेलें का समापन  माँ की डोली यात्रा के बाद ही होती है।  अर्धरात्रि में डोली के पूजन के बाद बकरें का बलिदान किया जाता है।  डोली यात्रा में जहाँ पर भी डोली रूकती है भक्तों द्वारा देवी की पूजा करते हुए श्रद्वा सुमन अर्पित किया जाता है।

चैती मेला मान्यता

चैती मेला का अपने ऐतिहासिक पहलु के साथ पारम्परिक मान्यता भी है। किवदंती है की बालासुंदरी मंदिर के वर्तमान पंडितों के पूर्वज मुग़ल काल में यहाँ आये थे।  और उनके द्वारा ही इस प्रसिद्ध माँ बालासुंदरी के मंदिर की स्थापना की गई थी। उस समय के मुग़ल सम्राट रह चुके औरंगजेब द्वारा भी मंदिर को बनाने में सहायता की है।  मंदिर के पंडा की शक्तियों के बारें में उल्लेखित है की एक समय में एक महात्मा आएं और उन्होंने पंडा से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की बात कही।  अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कंदब के पेड़ पर पानी का छींटा मारा तो वह पेड़ सूख गया।  महात्मा उनकी शक्तियों से परिचित हो गएँ और उन्होंने फिर से पंडा को उस पेड़ को हरा करने के लिए कहा।  पेड़ हरा तो हो गया लेकिन वह अंदर से खोखला हो गया।

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