श्रद्धा और भक्ति की अनोखी छवियों को प्रस्तुत करता उत्तराखंड अपने पारम्परिक रीती रिवाजों के साथ जन्म से जुड़ा हुवा है। अपनी कला और संस्कृति को जीवंत रखते यहाँ के निवासियों द्वारा हर वर्ष बड़ी ही आस्था और भक्ति के साथ लोकपर्वों एवं त्यौहारों को मनाया जाता है। उन्ही प्रमुख त्यौहारों में से एक है लोकपर्व वट सावित्री जिसे उत्तराखंड के निवासियों द्वारा हर वर्ष हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ लोकपर्व वट-सावित्री के बारें में जानकारी साझा करने वाले है आशा करते है की आपको आज का लेख पसंद आएगा।
वट-सावित्री पर्व क्या होता है
वट-सावित्री पर्व भारतीय नारियों का मुख्या पर्व है जिसे सभी विवाहित महिलाएं अपने पति को लम्बी आयु के लिए हर वर्ष रखा करती है। धार्मिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है वट यानि की बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। तब से किवदंती बरगद वृक्ष की पूजा करने से सुख-समृद्धि, लंबी आयु, और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है। तब से सभी विवाहित महिलाओं द्वारा वट-सावित्री पर्व मनाया जाता है। और उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए वट-सावित्री पर्व मनाया जाता है। पर्व का उदेश्य केवल पति की लम्बी आयु ही नहीं बल्कि दांपत्य जीवन में चल रही परेशानियों के निवारण के लिए भी वर्त रखने की मान्यता है।
वट-सावित्री पर्व कब मनाया जाता है
हिन्दू धर्म पवित्र धर्मों से एक है। हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले हर पर्व का ऐतिहासिक होने के साथ साथ धार्मिक महत्व भी है। और हर पर्व को किसी विशेष समय के अनुसार मनाएं जाने का प्रावधान रहा है। वही जिस पर्व का महिलाओं द्वारा बड़ी बेसब्री से इन्जार किया जाता है वह वट-सावित्री पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति भावना से मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। यदि बात की जाएँ वट सावित्री व्रत 2023 के बारें में तो बताना चाहेंगे की सावित्री व्रत 2023 में शुक्रवार 19 मई के दिन आ रहा है। मान्यता है कि इस योग में किए गए सभी कार्य जरूर पूर्ण होते हैं।
वट-सावित्री पर्व उत्तराखंड में किस तरह से मनाया जाता है
वट-सावित्री पर्व उत्तराखंड में भी बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है। राज्य के प्रमुख नगरों देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित कुमाऊ के कुछ भागों में भी वट-सावित्री पर्व मनाया जाता है। पहाड़ी क्षेत्र में बरगद वृक्ष न पाए जाने की अवस्था में वट-सावित्री पर्व का प्रचलन देखने को नहीं मिलता है। लेकिन नगरीय क्षेत्र में इस पर्व का विधि अनुसार आयोजन किया जाता है। आज के दिन की शुरुवात ही महिलाओं द्वारा कुछ खास तरह से की जाती है। पति की लम्बी आयु के लिए सभी महिलाओं द्वारा आज के दिन वर्त रखा जाता है। सभी महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत पूजा का सामान लेकर बरगद के वृक्ष नीचे बैठ कर पूजा अर्चना की जाती है। सुख-समृद्धि, लंबी आयु, और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त की कामना करते हुए कच्चे सूत (धागे) से वट वृक्ष की सात बार परिक्रम करते हुए बांधती हैं। आज के दिन ही मंदिरों में भी भीड़ देखने को मिल जाती है।
वट-सावित्री पर्व का महत्व
हर पर्व की तरह वट-सावित्री पर्व का भी अपना धार्मिक महत्व देखने को मिल जाता है। जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है की वट वृक्ष में यानि की बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास है। इसलिए ऐसा माना जाता है की बरगद वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजन, व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इतिहास के पन्नो से भी पता चलता है की वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। वट वृक्ष को ज्ञान, दीर्घायु का पूरक माना जाता है। इसलिए जो भी विवाहित महिला वट-सावित्री वर्त रखते हुए बरगद वृक्ष की पूजा करती है उसे अखंड सौभाग्य का फल मिलता है।